यूनिवर्सिटी का पहला दिन था...मन में एक अंजाना सा डर था, फिर शिवशक्ति ढाबा पर कई क्लासमेट्स के साथ उससे मुलाकात हुई, हल्की फुल्की बातें हुईं लेकिन न दोस्ती का कोई प्रस्ताव और न साथ निभाने वादा। फिर भी एक दूसरे की आंखों में हमने भरोसे की वो इबारत पढ़ ली थी जो दस सालों से हमें बांधे हुए है। एक छत के नीचे उतार चढ़ाव भी खूब देखे। झगड़े, अपने - पराये, मूवी, मस्ती, झूठ, सच, दुख, सुख, सब कुछ हमारा साझा था। लेकिन कल उससे मिलने के बाद पहली बार में घर लौटा तो उदास...दिन भर सोचता रहा...आखिर क्यों वो मुझसे आंख नहीं मिला रहा है...!