जी लीजिये.. मर जाइए.. आ जाइए.. ना आइये फुरसत किसे ..है आजकल.. पूछे जरा क्या बात है?
यूँ टपकी है.. फिर से मेरे.. कमरे की वो.. छत रात भर... जैसे कोई ..रोता रहा.. कह ना सका ..क्या बात है. ... वाकिफ हूँ मैं.. दीवारों की.. आदत से यूँ अच्छी तरह मैंने कहा ..कुछ भी नहीं.. सुनता रहा क्या बात है.
नासेह बड़ी.. मुश्किल में है.. क्या तो कहे.. क्या ना कहे खुद ही कही.. हमने ग़ज़ल.. खुद ही कहा.. क्या बात है!!